अरे सरिता मेरे जूते कहाँ हैं ?हजार बार तुम्हे कहा है की इन्हें साफ़ कर के पोलिश कर के रखा करो । और ये क्या है इस सूट के साथ ये टाई !!! तुम 10 साल बाद भी गवार की गंवार ही हो एक चीज भी बदल नहीं पायी तुम अपने अंदर । चलो अब मुझे ही देखती रहोगी या नाश्ता भी लगाओगी ।
बस जब देखो ये तले भुने घी के परांठे बना देती हो करती क्या हो तुम सारा दिन घर पे , और कुछ नहीं तो कम से कम कुछ ढंग का खाना ही बनाना सीख लो । मेरी माँ तो वैसे ही बिस्तर पर हैं बच्चे स्कूल चले जाते हैं उसके बाद तुम सारा दिन सिवाय पलंग तोड़ने के करती क्या हो । सारा मूड ख़राब कर दिया तुमने
जा रहा हूँ मैं आज women's day के उपलक्ष में एक सभा का आयोजन किया गया है जिसकी सारी जिम्मेदारी मुझ पर है लेकिन तुम्हे क्या सारा दिन ख़राब हो गया
रुकिए....
अब क्या है हजार बार कहा है पीछे से मत टोका करो
वो माननीया अतिथी जी को पहनाने के लिए जो शॉल लाये थे वो आप यह भूल कर जा रहे थे मैं बस वही देने आई हूँ लीजिये
बाय !!
Happy women's day !!!
----parul'pankhuri'
picture credit --google
पुरुष की दोहरी मानसिकता का सटीक चित्रण.. जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी, कुछ नहीं बदल सकता...आवश्यकता है की इस सोच का प्रारंभ सबसे पहले घर से शुरू किया जाए...बहुत प्रभावी लघु कथा
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ !
Deleteयह हिंदुस्तानी पुरुष मानसिकता का यथार्थ-दुःखद निचोड़ है.. पारुल ने एक छोटे से घटनाक्रम के बहाने सीधा चित्रण और प्रहार किया हमारी इस विकृत मानसिकता पर.. साधुवाद!
ReplyDeletehardik aabhaar vinod doshi ji
Deleteबढिया लिखा है।
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