रात हो जाती है जब घनी स्याह
तूफ़ान समुन्दर में उठते हैं अथाह
उस पहर जब
जिन्दा भी मुर्दों की श्रेणी में आते हैं
मरहम से सपने नींद सजाते हैं
महसूस होता है एक साया
जिस्म पर हाथ फेरता
चूड़ियाँ तब भी टूटती हैं
दर्द की वो भी पराकाष्ठा है
मगर चीख मेरे जिस्म से
बाहर नही निकलती
क्योंकि -
उसके पास "सर्टिफिकेट" है
--------------पारुल 'पंखुरी'
चित्र- साभार गूगल से