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जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

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Thursday 26 September 2013

कजरारी...















जीवन-पथ, कांटो का आँचल
यहाँ सपने ही बस सुहाने लगे
पीड़ा तन की तो देती है दिखाई
मन की पीड़ा समझने में ज़माने लगे
शुष्क बनने की निरी कोशिश हुई
नमकीन स्वादों से हम घबराने लगे
अंधेरों से ऐसी मोहब्बत हुई
उजाले आशा के हमें अब सताने लगे
मैं क्या हूँ मैं क्यूं हूँ ,यही ढूँढते
आईने से भी अब हम लजाने लगे
ग़मों की स्याही आँखों में फैली
"कजरारी" तबसे ही हम कहाने लगे
------------------------------------------------पारुल'पंखुरी'

Thursday 5 September 2013

देह्शाला













देह्शाला
भोग का प्याला
पैर की जूती
कपडा फटा पुराना
बिना कुण्डी वाले कमरे में बैठी वैश्या
चलती बस में भेडियो से जूझती आवारा
कूड़े के ढेर पे पड़ा अधनुचा जिस्म
धुएं निकालता फफोलो से भरा चेहरा
लपटों में लिपटा अधजला बदन
खून में लथपथ सिसकती आवाज
कुछ भी समझ लो
बस ...
औरत को इंसान समझने की भूल मत करना

-------------------------पारुल'पंखुरी'

(आखिरी पंक्ति औरतो को संबोधित करते हुए लिखी गयी है )
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