पंखुरी के ब्लॉग पे आपका स्वागत है..

जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

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Thursday 29 August 2013

बस एक ख़त..













 बस एक ख़त लिख दो ..
 प्रेम की कोई बात हो कह लो
 चाँद से रोशनी उधार ले लो
 फूलो से खुशबू तुम ले लो 
 टहनी की एक कलम बना लो
 बस एक ख़त लिख दो

 "क्या चाँद की चांदनी में
 मै तुमको दिखाई देती हूँ .. 
 क्या पानी की कल कल में मै
 तुमको सुनाई देती हूँ 
 क्या इन्द्रधनुष के रंगों में मै 
 झूमती नाचती लगती हूँ
 क्या नीले ऊंचे आसमा में 
 उडती दिखाई देती हूँ ??
 ये सारी बातें हमसे कह दो
 कुछ अपने सपने तुम लिख दो

 कुछ और नहीं कर सकते तो
 कोरा सा एक कागज़ ले लो 
 लेकर अपने हाथो में, उसपे
 प्यार भरा एक चुम्बन रख दो
 देकर स्नेह स्पर्श ख़त को 
 अक्स अपना उसमे तुम भर दो

 वो ख़त नहीं एक तोहफा होगा 
 अनमोल और अनोखा होग
 देकर अपना वो स्नेह स्पर्श 
 मुझको थोडा और जिला दो
 बस एक  ख़त लिख दो 
 हाँ एक ख़त लिख दो
------------------------पारुल 'पंखुरी'

Thursday 15 August 2013

मेरा फर्ज ...



सभी मित्रो को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें





जिसकी गोद में बचपन खिलखिलाया
जिसके आँचल ने दुश्मनों से छुपाया
खुद जुल्म सहे ..हमको बचाया
ऐसी माँ भारती का हम पे कर्ज है
अब माँ को सम्हाले ये मेरा फर्ज है

जिसने गंगा सा निर्मल जल है बहाया
जिसने हिमालय सा प्रहरी रक्षा को बिठाया
जिसने कपूतो को भी ममता की छाँव में सुलाया
ऐसी माँ भारती का हम पे कर्ज है
अब माँ को संभाले ये मेरा फर्ज है

क्यों करें हम इन्तजार बरसो तलक
जन्मेगा फिर से सुखदेव या कोई भगत
फिर लेगी कोई लक्ष्मी अवतार है
कोढ़ हुआ देश को ये बड़ा मर्ज है
तुरंत इसका उपचार मेरा फर्ज है

डर डर के जीना कोई जीना नहीं
अब इस दर्द को हमे और पीना नहीं
घर घर में बनाने हैं भगत और गुरु
के बिन कफ़न के .. कोई अब निकले नहीं
मेरी आज बस यही अर्ज है
माँ भारती को बचाना अब मेरा फर्ज है ...

-------------------------पारुल'पंखुरी'

Tuesday 13 August 2013

मीठे बादल...












उमड़ घुमड़ घनन घनन
गरज रहे मीठे बादल
बादल से काला रंग ले
आँखें कजरारी बना लूं
नीला रंग ले आसमा का
चूड़िया कांच की सजा लूं
वो दूर लाल उड़ते गोले को
माथे पे सजा लूं
और इन्द्रधनुष के रंग बैंगनी
झिलमिल बिंदिया की बना लूं
नई हवा जो चली आज ये
तन मन इस से महका लूं
बारिश की झरती बूंदों से
धो डालू मन की स्याही
फैली स्याही ..हो गई कोरी
ज्यो कन्या हो बिन ब्याही
इस क्षण ऐसा मिला है सुख
नाही जाए मोसे बखावत
नयन अश्रु से नई आस का
करूँ मै मन भर स्वागत

------पारुल'पंखुरी'

Sunday 4 August 2013

मन मंथन ....



विचारों का समंदर, मन मथ रहा है

ख्वाहिशो का पारिजात
 
कभी नाउम्मीदी का हलाहल
 
स्वप्नों का कौस्तुभ
 
कभी जीवन रुपी ज्येष्ठा
 
मंथन , ज्वारभाटा उठा रहा है
 
तृष्णा लेखनी की, बढ़ा रहा है
.....

संभवतः धन्वन्तरी के आने की बाट जोह रही है ये !!!

-----पारुल 'पंखुरी'



पारिजात --पुरातन काल में समुन्दर मंथन के निकला एक दैवीय पेड़ जो न कभी मुरझा सकता है न मर सकता है 

हलाहल ---मंथन के दौरान निकला विष
कौस्तुभ- उसी दौरान निकला एक नगीना जो मूल्यवान है
ज्येष्ठा --- पुरातन काल में समुन्द्र मंथन के दौरान निकली दुर्भाग्य की देवी
धन्वन्तरी --- समुन्द्र मंथन के दौरान निकले ये एक चिकित्सक थे जो अपने हाथो में अमृत लेकर आये थे
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